प्रार्थना

असत्य नहीं, सत्य की ओर चलें  (कर्म का अभीष्ट) ! मोह-अन्धकार नहीं,  
दिव्य-ज्योति की ओर चलें (योग या अध्यात्म का अभीष्ट) !!
मृत्यु नहीं, अमरता की ओर चलें (ज्ञान का अभीष्ट) !!!
प्रार्थना

मंगलमय कामना करूँ आत्मतत्त्वम् प्रभु आप से ।
मुक्ति अमरता सद्बुद्धि दो सदा बचाओ पाप से ।।

तमहमजमनन्तमात्मतत्त्वं जगदुदयस्थिति संयमात्मशक्तिम् ।
द्युपतिभिरजशक्रशंकराद्यैर्दुरवसितस्तवमच्युतं नतोऽस्मि ।।
(श्रीमद्भागवत् महापुराण 12/12/66)
          ‘‘वे जन्म-मृत्यु आदि विकारों से रहित, देशकालादिकृत् परिच्छेेदों से मुक्त एवं स्वयं ‘आत्मतत्त्वम् (भगवत्तत्त्वम्)’ ही हैं । जगत् की उत्पत्ति-स्थिति-प्रलय करने वाली शक्तियाँ भी उनकी स्वरूपभूत ही हैं, भिन्न नहीं ।  ब्रह्मा, इन्द्र, शंकर आदि लोकपाल भी उनकी स्तुति करना लेशमात्र भी नहीं जानते । उन्हीं एकरस सच्चिदानन्दघन रूप परमात्मा परमेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ ।’’  


          उसी सच्चिदानन्द रूप परमतत्त्वम् रूप ‘‘आत्मतत्त्वम्’’ शब्दरूप भगवत्तत्त्वम् का गीता (13/11-12-13) वाले ही विराट पुरुष सहित बात-चीत सहित साक्षात् दर्शन-परख-पहचान प्राप्त कराने वाले--

तत्त्ववेत्ता परमपूज्य सन्त ज्ञानेश्वर
स्वामी सदानन्द जी परमहंस